एसीएस आनन्द बर्द्धन ने स्प्रिंग एंड रिवर रिजूविनेशन प्राधिकरण समीक्षा बैठक में किया मंथन

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देहरादून/रूपाली : शुक्रवार को उत्तराखंड सचिवालय में 

अपर मुख्य सचिव आनंद बर्धन ने आला अधिकारियों को निर्देश दिए कि प्राकृतिक जल स्रोतों, नौलों – धारो और नदियों के संरक्षण एवं उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए बेहतर एवं प्रभावी कार्य योजनाएं बनाकर शासन को भेजें। सभी जिले एवं विभाग बेस्ट प्रैक्टिस अपनाते हुए ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जल स्रोतों के संरक्षण हेतु लघु एवं दीर्घ कालीन नीतियों पर कार्य करें। उन्होंने कहा संबंधित क्षेत्र के अत्यधिक महत्वपूर्ण, जल स्रोतों का संरक्षण एवं पुनर्जीवीकरण को शीर्ष प्राथमिकता में रखते हुए कार्य किए जाएं। 

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि चिन्हित किए गए जल स्रोतों एवं नदियों का जिओ – हइड्रोलॉजिकल अध्ययन करवा कर उसकी नियमित समीक्षा की जाए। उन्होंने सभी जिला अधिकारियों को जिलों के विभिन्न स्थानों पर बनाए गए अमृत सरोवर के ग्राउंड वेरिफिकेशन कराने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा सारा से संबंधित कार्य योजनाओं में किसी तरह की दिक्कत आने पर तुरंत शासन में संबंधित विभाग को अवगत करवाया जाए। सभी संबंधित विभाग आपसी सहयोग से जल संरक्षण के कार्य को करें। 

वही अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सारा) नीना ग्रेवाल ने बैठक में बताया कि राज्य में ग्राम स्तर पर 5421 जल स्रोतों, विकासखण्ड स्तर पर 929 क्रिटिकल सूख रहे जल स्रोत, एवं जनपद स्तर पर 292 सहायक नदियों / धाराओं की उपचार गतिविधियां संचालित हैं। इस प्रकार कुल 6350 चिन्हित जल स्रोत का उपचार कार्य गतिमान है। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण अभियान 2024 के अंतर्गत 2.51 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी को रिचार्ज करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसके सापेक्ष लगभग 2.38 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी को रिचार्ज कर लिया गया है। 

साथ ही उन्होंने ने बताया कि जिला समिति द्वारा निरूपित योजनाओं में 50 प्रतिशत सारा द्वारा प्रदत अंश के रूप में दिया जायेगा व शेष 50 प्रतिशत सम्बन्धित कार्यदायी संस्था / विभागों द्वारा कन्वर्जेंस के माध्यम से वित्त पोषण से किया जायेगा। क्रिटिकल जल स्रोतों का रिचार्ज जोन / क्षेत्र, जियो- हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन उपरांत ही निर्धारित किया जायेगा। उन्होने बताया कि क्रिटिकल जल स्रोतों के चिन्नीकरण एवं उसके उपचार हेतु सारा द्वारा पेयजल निगम, जल संस्थान,  सिंचाई , लघु सिंचाई, वन विभाग एवं ग्रामीण विकास विभाग के साथ मिलकर कार्य किया जा रहा है। 

ऐसे में उन्होंने बताया कि जल संस्थान एवं जल निगम द्वारा  पेयजल आपूर्ति हेतु मह्त्वपूर्ण चिन्हित लगभग 500  जल स्रोतों, जिनमे  विगत वर्षों में जल प्रवाह 50 प्रतिशत से भी कम हो चुका है, ऐसे जल स्रोतों के उपचार हेतु  स्प्रिंगशेड विकास के कार्य, वैज्ञानिक अवधारणा के अनुरूप किए जाने हेतु  जल निगम,  जल संस्थान एवं वन विभाग को निर्देश दिए गए हैं। 

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